तेरी मेरी बातें
तेरी मेरी बातें
माना हो तुम दूर बहुत,
फिर पास मुझे क्यों लगते हो....
नाता नहीं है तुमसे कोई,
पर अपने से मुझे लगते हो !!
लाख मनाओ इस दिल को,
पर दिल ये कहां मानता है....
लगता है कि जैसे तुम्हें,
ये सदियोंं से जानता है !!
ज्यों कोई चकोर,
चांद को चाहता है....
वैसे ही तेरी मौजूदगी को,
ये दिल तलाशता है !!
चांद की चांदनी से,
चमक जाती है रात ये जैसे....
तुझ तक जाकर पूरी हो जाती है,
मेरी हर बात वैसे !!
कैसे बताएं तुझ को,
इस दिल पर क्या-क्या गुजरती है....
कोई सजा हो जैसे,
ये घड़ियां यूं ही गुजरती है !!
जब दिल की बातें,
इस दिल में ही कहीं रह जाती हैं....
फूलों जैसे इस दिल पर,
एक बोझ सी बन जाती है !!
जो चाहे समझा लो इसको,
दिल ये कहाँ मानता है....
दूर कहीं ख्वाबों की दुनिया में,
ये रहना चाहता है !!
देती है सुकून जहां,
इस दिल को ये दिल की बातें ....
कुछ तेरी बातें....
कुछ मेरी बातें....!!!