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Ruchika Rana

Abstract

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Ruchika Rana

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इतना तुमको चाहने लगे

इतना तुमको चाहने लगे

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दिल की गहराइयों में बसा बैठे हैं तुमको, 

भूलने में शायद अब जमाने लगें।

हर आती-जाती सांस में महसूस होते हो,

इस कदर तुम को चाहने लगे।


अलसाई-सी सुबह खुलती हैं जब ये आंखें, 

याद आता है नाम तेरा, फकत तेरी ही बातें। 

तमाम दिन गुजर जाता है इंतजार में, 

तुझे सोचते-सोचते ही ढलती हैं रातें। 

मेरे ख्वाबों की बस्ती में डेरा बस तेरा है,

महबूब-सा लगता वो चांद तेरा ही चेहरा है। 

झिलमिल करते तारे, मदहोश-सी चांदनी 

मेरी बेचैनी की गवाही देने लगे।

अल्फाज नहीं बयां करने को,

हम कितना तुमको चाहने लगे।


बात और है कि तुम न महसूस कर सके, 

इन धड़कनों की जुबानी कहे एहसासों को। 

न कहकर भी कही बातों को, 

बिन किए प्यार के इजहारों को। 

काश! कभी समझ पाते तुम भी,

इस मासूम से दिल के इशारों को।

समझ पाते कि मोहब्बत इतनी है ,

कि सब सितम तुम्हारे अब सुहाने लगे।

हर दर्द को दिल में बसाने लगे,

हम इतना तुमको चाहने लगे।



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