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Ruchika Rana

Abstract

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Ruchika Rana

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बेटियाँ

बेटियाँ

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रेत के घरौंदे बनाते-बनाते, 

कब अपना घर बनाना सीख जाती हैं... 

पता ही नहीं चलता...ये बेटियाँ, 

कब बड़ी हो जाती हैं,

पता ही नहीं चलता! 

छोटी-छोटी खुशियों के लिए, 

आसमान सिर पर उठा लेती थी जो,

कब बड़े-बड़े दुख छिपाना सीख जाती हैं...

पता ही नहीं चलता... ये बेटियाँ, 

कब बड़ी हो जाती हैं,

पता ही नहीं चलता!!

        

        


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