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Ruchika Rana

Abstract Others

4.6  

Ruchika Rana

Abstract Others

आखिर क्यों....?

आखिर क्यों....?

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औरतें निभाती हैं हर रिश्ते को ताउम्र,

बेटी बनकर, तो कभी बहन बनकर,

पत्नी बनकर, तो कभी माँँ बनकर,

प्रेमिका बनकर, तो कभी दोस्त बनकर !


वह निभाती है हर रिश्ता दिल से...

चाहे रिश्ता कितना भी बेदम हो,

चाहे उस रिश्ते में खुशियाँ कम हों

पर नहीं आने देती वह किसी भी रिश्ते पर आँँच !  


अपमान के कड़वे घूँट पी जाती है,

सब की खुशियों को पूरा करते-करते ही....

तमाम जिंदगी जी जाती है !

नहीं दिखाती वह दिल के जख्म किसी को,

खुद ही आँसुओं को पी कर रह जाती है !


नहीं सुनाती वह आपबीती किसी को,

होठों को सी कर रह जाती हैं !

पुरुष क्यों नहीं निभा पाता रिश्तों को इतनी शिद्दत से,

क्यों आड़े आ जाता है हर बार उसका पुरुष होना,


क्यों हर बार रिश्ते में वफा करते-करते वह रह जाता है,

क्यों वह रिश्तों को संभाल नहीं पाता, 

रिश्तों का टूटना क्यों नहीं चुभता उसे,

क्यों चुपचाप आँखें मूंद सब सह जाता है,

क्यों रिश्तों के टूटने की वजह बन जाता है हर बार....


एक बाप का पुरुषत्व,

एक भाई का रौब, 

एक पति का अहम,

एक प्रेमी की मजबूरियां,

एक दोस्त की जिम्मेदारियां,

क्यों पुरुष हर बार, हर रिश्ते में हार जाता है

अपने हालातों से हार के....

क्यों हर रिश्ते पर भारी पड़ जाता है

उसका पुरुषार्थ...

क्यों हर रिश्ते में ढूंढता है वह बस स्वार्थ....!!


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