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Ruchika Rana

Abstract Tragedy

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Ruchika Rana

Abstract Tragedy

'अंतर्मन'

'अंतर्मन'

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मेरे अन्तर्मन की व्यथा किस ने देखी,

इस व्यथित मन की आखिर कौन सुने सिसकी! 

जो कह भी दूँ, कुछ इन शब्दों के आवरण में, 

तो कौन उसे समझेगा, 

मेरे शब्दों को तो जान न सका, 

कैसे वह मौन समझेगा !!

कितनी ही बातें हैं इस हृदय के अंतर में, 

चंचल सी लहरें हों जैसे शान्त समंदर में!

दिन प्रतिदिन इस हृदय की पीड़ा बढ़ती जाती है, 

अन्ततः नयनों में समा, अश्रुधारा बन बह जाती है !!

  



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