विश्वास
विश्वास
जब रावण की कैद में रहीं जानकी,
अंतर्मन में धुन लगी थी केवल श्री राम की,
बैठ वाटिका में अनन्य ही चहुं ओर निहारा करतीं,
अश्रुत आंखें केवल श्रीराम की राहें बुहारा करतीं
श्वास-माला करती थी निरंतर राम का चिंतन,
आस लगी थी सिया के मन ही मन,
विश्वास मेरा श्रीराम कभी ना तोड़ेंगे,
हे रावण! देखना
मेरे प्रभु राम ही तेरा अहंकार तोड़ेंगे
आस सिया की डिग न पाई,
श्रीराम ने विश्वास की प्रीत निभाई।