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Arunima Thakur

Comedy Romance

4  

Arunima Thakur

Comedy Romance

सुकून

सुकून

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किसी अनजान शहर की एक गली

उसकी जानी पहचानी खुशबू से महक गयी।

हाँ! शायद मुझे वह दिख गयी।

हाँ वही थी, आज भी उतनी ही खूबसूरत

बस खुले बालों को क्लचर में लपेट लिया था।

जैसे उसने अपने व्यक्तित्व को,

चंचलता को समेट लिया था।

पर वह एक लट आज भी

उसके गालों पर अठखेलियाँ कर रही थी।

और मेरी उंगलियाँ आज भी उस लट को

उसके कानों पर समेटने को मचल रही थी।


प्रशस्त ललाट पर सिंदूर की रेखा जगमगा रही थी।

मानो सुरमई शाम उसके क्लांत चेहरे पर

उतर कर मुस्कुरा रही थी।

कजरारी आँखों के बीच में बिंदी ऐसे सज रही थी I

मानो झील में बादलों की ओट में सुरमई शाम ढल रहीं थी।

एक हाथ में बेटी का हाथ थामें

बिल्कुल संतूर गर्ल लग रही थी।

जी हाँ! कहीं से भी वह आठ - नौ

साल की बेटी की माँ नहीं लग रही थी।

दिल यह मानने को तैयार ही नहीं था कि

उसे पराए हुए एक जमाना हो गया है।


दिल में टीस होती है, बस किस्सा पुराना हो गया।

दिल तो आगे बढ़ कर उसे बांहों में भरना चाहता था।

पर रुक गया, वह अपनी बेटी से मेरा परिचय क्या देगी ?

यह सोचकर ठहर गया।

तब से उसकी नजर मुझ पर पड़ी।

आँखों में थोड़ा संशय का भाव लेकर मुस्कुरायीं।

मुझे भी मुस्कुराता पाकर पास आयीं।

अभिवादन कुशल क्षेम के बाद

एक कप कॉफी के लिए घर पर बुलाया।


फिर अपनी बेटी से बोली यह मेरे साथ पढ़ते थे

मेरे दोस्त हैं, तुम्हारे . . . .

मैं मन ही मन घबरा रहा था,

कहीं मामू ना बना दें यह सोचकर अधमरा हुआ जा रहा था।

बेटी ने हाथ जोड़े और उसके पहले वह मामा कहती

वह बोल पड़ी, बेटा अंकल को हाय बोलो

अंकल सुनते ही मेरे मन की बगिया में

बहार आ गई, दिल खुश हो गया

चेहरे पर निखार आ गयी।

यह एहसास ही कितना सुकून देता है।

उसके तन पर ना सही

मन पर अधिकार आज भी मेरा है। 



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