साथ
साथ
साथ मेरा हमेशा निभा जाते हो,
जब थकता हूँ तो राहत बनकर
हारता हूँ तो साहस बनकर।
रोता हूँ तो कांधा बनकर
साथ मेरा तुम हमेशा निभा जाते हो,
जब अकेला होता हूँ तो साथी बनकर,
संघर्षों में सारथी बनकर,
गहन विचारों में भाव बनकर
व्यवहारों में संस्कार बनकर
तुम सदैव साथ मेरा निभा जाते हो।
बात न हो बरसों तक तुमसे फिर भी
मुलाकात रोज कर जाते हो।
मूँद लेता हूँ जब आँखें अपनी
झलक अपनी दिखला जाते हो।
खो
जाता हूँ जब भी
इस भीड़ भरी दुनिया में।
सूझती नहीं जब राह कोई,
सहसा
हाथ थाम मेरा तुम्हीं
सही दिशा दिखाते हो।
कभी मेरे मौन में साधना
तो कभी गहन-गूढ़ ग्रंथों की
सहज-सरल परिभाषा
बन जाते हो।
कौन कहता है रिश्तों को निभाने के लिए
सामने होना जरूरी होता है।
दूर होकर भी तुम रिश्तों की उन सभी रस्मों को
सहज ही निभाते जाते हो।
सच कहता हूँ तुमसे,
रहकर पास मेरे तुम,
मुझ में ही घुल-मिल जाते हो।।