अहंकारी
अहंकारी
अहंकार जब हद से ज्यादा बढ़ जाता है
फिर उस अहंकारी को दूसरा कोई
कहाँ नज़र आता है।
अहम भाव से भरा वह
गुब्बारे से भी अधिक
ऊँचाई पर उड़ जाता है।
दूसरों की तकलीफों में भी वह
अपने किए अहसानों का
गुणगान करता दिख जाता है।
जीवन-भर भेदभाव से भरा
वह माटी का पुतला
एकाकी जीवन जीता माटी का पुतला वह
अंत समय शमशान घाट पहुँच
मिट्टी में मिल जाता है।
कर्म साथ जाते हैं, इस शाश्वत सत्य को
जानते हुए भी
नश्वर संपत्ति पर मूर्ख वह
अपना अधिकार जमाता है।
अहम में डूबे इंसान को अंत में
अहम ही साथ अपने ले जाता है।