माता के रूप
माता के रूप
हटा दी उसने भगवान की सभी तस्वीरों को
जिनके सामने खड़े होकर माँगी थी उसने
कई कई दफा दुआएँ ।
बाँधे थे पुत्र प्राप्ति के लिए मन्नतों के धागे।
बंद कर दिया उसने उन जगहों पर जाना भी
जहाँ बैठकर की थी उसने भावी जीवन की भव्य कल्पनाएँ।
सुबह से उत्सुकता से उसका दिल मचल रहा था।
गर्भवती पत्नी को भी क्रोध मिश्रित प्रेम से देख
आँखों-ही-आँखों में डर का इशारा दिखलाया था।
जब उत्सुकता से भरे उस इंसान की
गोद में डॉक्टर साहब ने नन्हीं पुत्री का दायित्व थमाया था।
कल रात माता की चौकी में
बड़े उत्साह से माता के जयकारे
उस माता के भक्त ने लगाया था।
वहीं देवी भक्त आज
माता के दोनों रूपों को अस्पताल के
एक कोने में छोड़ भाग चला आया था।