रिश्ता जन्मों का
रिश्ता जन्मों का
हर बार उदासी उसकी
परेशां कर जाती है मुझे।
निकल पड़ता हूँ फिर,
तलाश में उस खुशी की,
जो अक्सर अलग हो जाया करती है उससे।
बनकर विक्रम लाद लेता हूँ उस खुशी को
पीठ पर अपने।
की उड़ ना जाये हर बार की तरह,
इस बार भी कहीं।
पूछती वह भी मुझसे
बेताल की तरह ही,
एक सवाल हर बार यहीं-
सच कहना जरा,
क्या तुम्हें खुशियों की परवाह नहीं?
ढूंढते हो मुझे तो अपने लिए नहीं,
जिसकी चाहते हो मुस्कान
खबर उसको भी नहीं।
हँसकर कहता मैं उससे
वही...
राजा विक्रमादित्य की तरह ही-
जन्मों का रिश्ता जुड़ा है उससे मेरा,
रिश्तों की बुनावट उससे ही पायी है।
इस जन्म की मेरी खुशियाँ उसके
हिस्से ही आयी है।
आँखों में भर आँसू,
रख हल्के-से द्वार पर उसके,
खुशी को,
धीमे स्वर में कहकर चला जाता हूँ मैं-
अगले जन्म में पाने की उसे,
किस्मत ने तरकीब यही सुझाई है।

