मुकद्दर
मुकद्दर
तस्वीरें बदलने से तकदीरें नहीं बदला करती साहब।
लड़ना पड़ता है मुकद्दर से
झेलने पड़ते हैं अनचाहे परिणामों को।
अनगिनत रिश्तों की बलि चढ़ानी पड़ती है।
व्रत, उपवासों की अमिट मालाओं का
दामन थामकर जपना पड़ता है
उन संघर्षों का नाम।
जो दिख जाते हैं जीवन रूपी आकाश में
टूटते सितारों की तरह।
अपनी कमियों का अहसास कराने।
और हम बेबस हो
मुकद्दर के खेल को मूक
दर्शक बन देखते रह जाते हैं।।
