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Vijay Kumar

Tragedy Others

4.5  

Vijay Kumar

Tragedy Others

सांसे नहीं है

सांसे नहीं है

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कुछ तो एक अबूझ सी पहेली है

जो अभी तक किसी से सुलझी नहीं है

बहार कहने को तो हवा बहुत है

पर जीने के लिए सांसे नहीं है,

         सलाह, मशवरा और हमदर्दी तो बहुत है

            पर मरहम के लिए कोई दवा नहीं है

    सबने मुँह के साथ - साथ आँख भी ढक लिया है

  क्योंकि देश-दुनिया का दिखता मंजर अच्छा नहीं है,

खिलखिलाता वो घर आंगन आज बिलख रहा है

शायद बच्चों के सर पे किसी का साया नहीं है

श्मशान के हर द्वार पे लाशों के ढेर लगे हैं

अब तो चार कंधे देने वाला भी कोई नहीं है,

            हमसे कोई तो तरक्की ऐसी हुई है

          जिसकी कीमत अभी अदा नहीं हुई है,

हर गाँव हर शहर उजड़ा - उजड़ा सा दिख रहा है

सपनों और उम्मीदों का दामन हर पल टूट रहा है

किसी का सहारा तो किसी का मुस्कान ले गया है

कुदरत का कहर भी क्या - क्या रंग दिखा गया है,

       इंसानों ने भी ऐसा क्या तरक्की कर दिया है

   जो अब आदमी को आदमी से ही डर लग रहा है

        दुनिया जिंदगी के लिए दुआ मांग रही है     

अपनों की सांसो की डोर हर पल जो उखड़ रही है,

इंसानियत से लेकर हवा तक बिक रही है

कुदरत का ये तमाचा बेवजह भी नहीं है

खुद पर ये गुरूर कब तक सही है

क्या इस हाहाकार से सबक लेने की जरूरत नहीं है?



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