मैं हूँ मेहनतकश मजदूर
मैं हूँ मेहनतकश मजदूर
सही कहा साब आपने,
मैं हूँ मेहनतकश मजदूर,
कहने को तो दिल का राजा,
पर करने को हर काम, हूँ मैं मजबूर।
धन-दौलत का लालच नहीं मुझे,
दो वक्त की रोटी को हूँ मोहताज।
देख कर न करियो अचरज,
सबको कहता मैं महाराज।
तपती दोपहरी में भी न रुकता हूँ,
दुनिया का हर काम मैं करता हूँ ।
भले न मिले मुझे पूरी मजदूरी,
फिर भी न रखता मैं किसी से दूरी।
रोज सवेरे निकलता मैं, सांझ की रोटी को,
कोई टोकता, कोई रोकता,आदत मेरी खोटी को।
पी लेता हूँ दो बीड़ी, भुलाने को पेट की प्यास
दुर्बल हूँ भले ही तन से,पर मन में रहती एक आस।
एक दिन तो आएगा अपना भी
मैं कमाल ये कर जाऊंगा।
जान लगा दांव पर खुद की
बच्चों को संबल मैं बनाऊंगा।
सही कहा साब आपने,
हूँ मैं मेहनतकश मज़दूर।
पाने को दो वक्त की रोटी को,
पलायन करता मैं दूर-दूर।
लेकिन इसके बाद भी मैं, ना चोरी-डकैती करता हूँ
मेहनत से मिले भले ही दो पैसे, ईमानदारी से जीता हूँ।
गर्व से कहता हूं मैं मजदूरी करता हूँ,
लेकिन फिर भी स्वाभिमान से जीता हूँ।
विनम्र अपील- दोस्तों, पेट तो अपना हर कोई भरता है लेकिन
आपसे अनुरोध है कि अगर आपके आस- पास कोई ऐसा परिवार रहता है
तो उसका साथ दे और उसे महसूस न होने दे कि वो किसी गरीब तबके से है।