STORYMIRROR

Anand Shekhawat

Abstract

4  

Anand Shekhawat

Abstract

मैं हूँ मेहनतकश मजदूर

मैं हूँ मेहनतकश मजदूर

1 min
24K

सही कहा साहब आपने,

मैं हूँ मेहनतकश मजदूर,

कहने को तो दिल का राजा,

पर करने को हर काम, हूँ मैं मजबूर।


धन-दौलत का लालच नही मुझे,

दो वक्त की रोटी को हूँ मोहताज।

देख कर न करियो अचरज,

सबको कहता मैं महाराज।


तपती दोपहरी में भी न रुकता हूँ,

दुनियां का हर काम मैं करता हूँ ।

भले न मिले मुझे पूरी मजदूरी,

फिर भी न रखता मैं किसी से दूरी।


रोज सवेरे निकलता मैं, सांझ की रोटी को,

कोई टोकता,कोई रोकता,आदत मेरी खोटी को।

पी लेता हूँ दो बीड़ी,भुलाने को पेट की प्यास

दुर्बल हूँ भले ही तन से,पर मन में रहती एक आस।


एक दिन तो आएगा अपना भी

मैं कमाल ये कर जाऊंगा।

जान लगा दांव पर खुद की 

बच्चों को सम्बल मैं बनाऊंगा।


सही कहा साब आपने,

हूँ मैं मेहनतकश मजदूर।

पाने को दो वक्त की रोटी को,

पलायन करता मैं दूर-दूर।


लेकिन इसके बाद भी मैं,

ना चोरी-डकैती करता हूँ

मेहनत से मिले भले ही

दो पैसे,ईमानदारी से जीता हूँ।


गर्व से कहता हूं मैं मजदूरी करता हूँ,

लेकिन फिर भी स्वाभिमान से जीता हूँ।


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract