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गजेंद्र कुमावत"मारोठिया"

Abstract Tragedy Inspirational

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गजेंद्र कुमावत"मारोठिया"

Abstract Tragedy Inspirational

मशहूर

मशहूर

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एक पल ऐसा आया, 

जब मैं मशहूर हो गया, 

शब्द लिखें जो अंतर्मन से , 

वो नव उपन्यास हो गया, 

लाखों की तादात थी 


मेरे घर के सामने 

कलम की ताकत थी ,

मेरे शब्द विकास में,

एक पल ऐसा आया, 

जब मैं मशहूर... 


बना गया इतिहास, 

नवसर्जन संग्रह हो गया, 

पाखंड, आडम्बरों का विद्रोह कर, 

नवजीवन निर्माण हो गया, 

जान लिया जिसने उन शब्दों को, 


भवसागर को पार किया, 

फिर भी उसने न जाने क्यूँ, 

प्रकृति का संहार किया, 

याद कर मेरे शब्दों को, 

फिर से मनुष्य जाग गया, 

एक पल ऐसा आया, 

जब मैं मशहूर... 


आगे बढ़ा, बढ़ता गया 

चलता रहा, चलता गया, 

सपना मेरा सब मुझे जाने, 

चहुँओर मेरे शब्द ही चले, 


इतना जो गुरुर हुआ, 

मेरी आँख खुली, 

मेरा सपना चूर - चूर हो गया, 

एक पल ऐसा आया, 

जब मैं मशहूर... 


अब मैंने बस इतना जाना, 

बस मुझे लिखते जाना है, 

एक दिन वो भी आएगा, 

जब तेरा डंका भी बज जायेगा, 

गुरुर न करना हे मेरे मन , 


तेरा शब्द भी सब पर छायेगा, 

जो आया मुझे वो सपना, 

मेरा सारा गुरुर गया, 

मैं अब मजबूत हो गया, 

एक पल ऐसा आया, 

जब मैं मशहूर।


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