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गजेंद्र कुमावत"मारोठिया"

Romance Tragedy

4.3  

गजेंद्र कुमावत"मारोठिया"

Romance Tragedy

संयोग

संयोग

1 min
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एक दफा गुजरा जब उसकी गली से 

इश्क़ मेरा मैं जान गया था 

चंचल हँसी, क्या शोख अदाएँ

पहली नजर में दिल ने उसे अपना मान लिया था 

ख़्वाबों और खयालों में 

दिन और रातों में 

बस उसका ही चेहरा आने लगा था 

सब्र मेरा अब ना ठहरा था 

मिलना था मुझको पर कठिन पहरा था 

एक दफा गुजरा जब उसकी गली से 

इश्क़ मेरा मैं जान गया था 


जिद बन गई वो मेरी, मंजिल रूहानी 

दिल में बस गया वो चेहरा नूरानी 

मिलने चला मैं उसकी गली में 

वो प्रेम की मूरत, सुवर्ण सजीली

देख के मुझको वो जान गई थी 

पर मैं खुद को भूल गया था 

एक दफा गुजरा जब उसकी गली से 

इश्क़ मेरा मैं जान गया था 


होश हुआ जब हम मिलने लगे थे 

जीना-मरना एक-दूजे संग कर ही चुके थे 

बैठ बगियन के पेड़ों की छाँवों में, 

तेरे संग जीने के फूल संजोये

एक - दूजे की छाँव बनें हम 

बाँहों में भर के क्या खूब ख़्वाब संजोये 

शाखें और कलियाँ, फूल और पत्तियाँ

शामें सुहानी, वो मेरी इबादत 

सपना मेरा सच हो गया था 

एक दफा गुजरा जब उसकी गली से 

इश्क़ मेरा मैं जान गया था।


अब रस्मों-रिवाजों की बारी थी, 

उसकी गली को मैं जान गया था 

दूर ना हम हो सकेंगे कभी

जिंदगी को मेरी मैं पहचान गया था 

इश्क़ ये अद्भुत यश-प्रतिमा का 

अधूरा मिलन संयोग हो गया था 

एक दफा गुजरा जब उसकी गली से 

इश्क़ मेरा मैं जान गया था।



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