STORYMIRROR

Sarita Maurya

Tragedy

4  

Sarita Maurya

Tragedy

भिक्षुक

भिक्षुक

1 min
22.9K


नभ आच्छादित घनघोर घटा, छाई नभ में चहुं ओर घटा

दम-दम दमकत दामिनी, घम-घम गरजत घनगामिनी

प्राणी सब खोज रहे निज गृह, व्याकुल सा कौन पथिक देखो

ओढ़े पटपीत लटा सा फटा

रिमझिम बरसै कहुं छाज टपै, चमचम चमकै किधौं आगि लगै

पीहू-पीहू पपीहा कि मोर नचैं, किधौं दादुर तान मिलाय भरैं

वाको अंग-अंग पिराई उठा

कबहूं शिव कबहूं विष्णु लगै रामा कबहूं, किंधो कान्ह सखा

आली क्षण में वह रूप विलोकति

भूलि गई वृषभा वसुधा

नवतड़ित हट्यो घनघोर गयौ रिमझिम बरखा का रूप छिपा

चली पथिक गली वह मंजुकली देखा भिक्षुक कंकाल खड़ा।।



Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Tragedy