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Krishna Nandan

Tragedy

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Krishna Nandan

Tragedy

बस्ता

बस्ता

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बेवजह ही डाले फिरते हैं हम

बस्ते में मजबूर रिश्तो का भार,

हमें पता है इनसे हमारे

जीवन में न रस है न सार।


इन उलझनों का

बीज हम ही बोते हैं,

बाद में फसल रूपी

कर्कशता का बोझ ढोते हैं।


कारन हम ही हैं हम ही हैं परिणाम,

जो रोक ले इसे प्रारंभ में ही तो

बस्ते में सिर्फ भरा हो अभिमान।


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