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Dr J P Baghel

Tragedy

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Dr J P Baghel

Tragedy

दुख को अगर जताना हो तो

दुख को अगर जताना हो तो

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बहुत हुआ तो जतला दूँगा मैं उनके प्रति खेद 

दुख को अगर जताना हो तो कर लेता हूं भेद ।१


मुझे ग्लानि हो नहीं सकी है दुख के देख पहाड़ 

कुदरत के संबंध रहे हैं जिनके साथ प्रगाढ़ ।२


जिनके दुख से रिसती रहती है नदियों- सी पीर 

जाता जहां थकान मिटाने मेरा तप्त शरीर ।३


उनका लोक अलग है हमसे लोक हमारा दूर 

हम ठहरे इस दुनिया के प्रभु वे ठहरे मजबूर ‌।४


दुख ही जीना सहना मरना दुख उनका संसार 

जिनके ऊपर टिका हुआ है मेरा हर व्यापार ।५


उतनी ही संतुष्टि उन्हें वे हैं जितने अनजान 

मेरा ज्ञान जरा-सा भी है उनके लिए महान ।६


मैंने कहा उन्होंने माना, है असार संसार 

गत जन्मों के पाप भोग दुख हैं उनको स्वीकार ।७


मारा जावे या मर जावे या हो अत्याचार 

मान इसे प्रारब्ध नहीं वे करते चीख-पुकार ।८


मैं हूं श्रद्धा पुरुष विधाता वे हैं मेरे भक्त 

रहते हैं वे मूक बहाता हूं जब उनका रक्त ।९


जब कुछ मेरे शत्रु दिखाते हैं उन पर अनुरक्ति

कभी-कभी कर भी देता हूं मैं दुख की अभिव्यक्ति ।१०



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