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Vijay Kumar parashar "साखी"

Tragedy

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Vijay Kumar parashar "साखी"

Tragedy

भिखारी

भिखारी

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मैं एक भिखारी हूं

शरीर से लाचारी हूं

सड़क पर रहता हूं

भीख मांग करता हूं

क्षुधा ख़त्म सारी हूं

मैं एक भिखारी हूं


लोग घृणा करते है

पर में प्रेम का पुजारी हूं

सबको ही अच्छा

आशीष देता हूं

मैं अच्छी दुआ देनेवाला

एक व्यापारी हूं

मैं एक भिखारी हूं


भीख मांगता इसलिये

शरीर से लाचार हूं

उम्र से साठ पार हूं

मैं एक,

टूटे शीशे की आरी हूं

मैं एक भिखारी हूं


मैं तो दीन-हीन हूं

मानते तुम,

मैं मतिहीन हूं

माना में कमजोर हूं

तुम से,

नहीं लगा सकता जोर हूं

पर तुम सा अहंकारी नहीं हूं

शरीर से भले अस्वस्थ हूं,

पर तुम सा, गरीबों का,

बलात्कारी नहीं हूं,

मैं एक भिखारी हूं,


भिखारी ही मर जाऊंगा,

पर तुम सा झूठ की,

किलकारी नहीं हूं

तुम जैसे,

रईसों की, कारी नहीं हुई

मैं एक भिखारी हूं


पर जैसा भी हूं

सत्य की लारी हूं

मैं नहीं तुम सा,

भ्रष्टाचारी हूं

मैं एक भिखारी हूं


शरीर से लाचारी हूं

पर अहिंसा का,

मैं तो पुजारी हूं

नहीं करता,

बुरा किसी का

मैं संतोष की

रेजकारी हूं

मैं एक भिखारी हूं



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