शहर मे गांव
शहर मे गांव
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शहर की अमीरी के आगे
बेबस है गांव की गरीबी
भूख से तड़पते इस पेट को
ललचाते शहरों के पकवान
भरे हुए पेट यह कभी न समझे
भूखे सो रहे कितने परिवार
महलों में रत जगे हो रहे
आंखों में कटी है सारी रात
मेहनत की थकान है इतनी
गहरी नींद सोये कामगार।