बेरहम जिंदगी
बेरहम जिंदगी
कच्चा -सा दिल, लम्हे नये चुन रहा है।
तंग आकर बेरहम गमों को बुन रहा है।
सड़क के किनारे एक, रोजमर्रा जीवन
रोटी के लिए खुद को, अब भून रहा है।
लबों पर कहने को सिर्फ गरीबी देखी है।
क्या पता किसने आज रोटी देखी है।
कोई खुद को मारना चाहता है क्योंकि
परिवार ने चार दिनो से रोटी नहीं देखी है।
सड़क किनारे एक, मजबूर अमीर को देखा।
रोटी के लिए बिकते हुए किसी ज़मीर को देखा।
बहुत बेरहम है ये जिंदगी जनाब यहाँ किसी दीन
के आँसू छोड़कर, दुखों के बहते समीर को देखा।
मौत कमबख्त आती नहीं, जिंदगी अब कटती नहीं।
शायद भूख से मर जाता, तो भूख मुझे रटती नहीं।
खाने का सपना दिखाकर, जो चले गए मुझे फिर
भूख की चंद मिनटों में भी, अब जिंदगी कटती नहीं।
पूरी जिंदगी में भूख मुझे कभी तोड़ नहीं पाई।
गरीब जो ठहरा, हकीक़त मुझे जोड़ नहीं पाई।
सपना दिखाकर जो चले, अब मैं खुद को रोक
नहीं पाया, और जिंदगी मुझे फिर मोड़ नहीं पाई।
