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Dr Baman Chandra Dixit

Drama Romance

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Dr Baman Chandra Dixit

Drama Romance

रूबरू आईने से

रूबरू आईने से

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मैं भी लिखता हूँ ग़ज़ल 

रोज़ तेरे नाम की,

आईना देखने के बहाने

तू भी पढ़ती होगी।


लफ्ज़ गुदगुदाते भी होंगे

फड़फड़ाते पन्नों को,

नाज़ुक उंगलियों से जब

जुल्फ़ों को हटाती होगी।।


आईना जानता होगा जरूर

तेरी हर अदाओं को,

ख़ुशी की फुहारों को जब 

होंठों पे रोकती होगी।।


छिपा भी ना सकोगी तुम 

बस करो छोड़ भी दो,

झुकी पलकों को ख़बर होगी

तुम जो सोचती होगी।।


गालों पे ना खिलती ऐसे ही

गुल गुलाब का सुर्ख़ रंग,

बेशर्मी सी कोई कसक

हया को छेड़ती होगी।।


पहर भर का संवरना तेरा

साँसें रोक रक्खे हैं,

इन धड़कनों की बेक़रारी

तू भी जानती तो होगी।।


आई ना ये हिचकी अभी

दिलों को उछाल कर,

आईना हूँ मैं श्रृंगार का

मुझसे क्या छिपा लोगी।।


इन खुली ग़ज़लों को मेरी

सीने में उड़ेल कर तुम,

रोज़ की तरह आज भी

महसूस करती होगी।।



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