पुराना बक्सा
पुराना बक्सा
ऊंची सी थी खंडहर इमारत
उल्टा सीधा उसका नक्शा
बिखरे पड़े थे सब पत्थर उसके
जहां पड़ा था काठ का बक्सा।
अंदर घुसते जब भी उसके
हर तरफ था मकड़ी जाल
साफ करते धूल हटाते वहां
लगता है उसमें था धन-माल।
डरावनी सी वो हवेली लगती
भ्रम की जिसमें आवाजें सुनती
हाथ पकड़ कर एक दूसरे का
लंबी डोर जैसी हमारी पंक्ति।
जब पहुंचे हम उसके पास
देखें तो उसमें क्या था खास
खुले कहां से अजीब था हिस्सा
और खुला नहीं वो पुराना बक्सा।
फिर अगले दिन बड़ा पत्थर लेकर
तोड़ फोड़ वहां मचाई थी हमने
टूट चुका था पुराना वो बक्सा
जिसमें काठ के खिलौने पाए हमने।
सोचा कोई दादी अम्मा होगी
जिसने खिलौने उसमें संभाले थे
दादी अम्मा का वो प्यारा बक्सा
जिसने प्यारे सपने मन में पाले थे