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Shakuntla Agarwal

Drama

5.0  

Shakuntla Agarwal

Drama

पिंजरे का पँछी

पिंजरे का पँछी

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बंद पिंजरे के पंछी की तरह मत समेट,

अपने आप को इन दर-दीवारों में !

वरना, उड़ना तो दूर,

फड़फड़ाना भी भूल जाओगे !


जरा बाहर निकल, आबो हवा में घूम,

वरना, बंद दीवारों में सिमट जाओगे !

इंसानी फ़ितरत है, मुखौटों में जीने की,


मुखौटा मत ओढ़, उन्मुक्त होकर जी,

वरना, हँसना तो दूर,

मुस्कुराना भी भूल जाओगे !


ज़रा खोल दिल के किवाड़ों को,

अपनापन आने दे !

वरना, एक दिन गैरों को तो छोड़ो,

अपनों के लिए भी तरस जाओगे !


रिश्तों की गरमाहट महसूस कर,

स्वाभिमान की होली जला !

वरना, कुलांचे भरना तो दूर,

कछुए की तरह सिमट जाओगे !


जरा, खोल से बाहर निकल,

रिश्तों को जी !

वरना, जीते - जी

मक़बरे में बदल जाओगे !


रिश्तों की फ़सल उगा,

मोहब्बत का बीज़ डाल !

खाद दे प्यार की,

रिश्तों की जड़ों को ज़रा !


शिद्दत से सींचो,

मोहब्बत के रिश्तों को,

वरना, मोहब्बत की तो छोड़ो,

कड़वाहट के लिए भी तरस जाओगे !


फलों से लदे वृक्ष,

अक्सर झुक जाते हैं !

ठूँठ हैं जो वो,

अकड़ के सीधे खड़े हो जाते हैं !


जरा लचीलापन ला, झुकना सीख,

वरना, तूफानों की तो छोड़ो,

"शकुन" तेज़ हवा के झोकों में

ही टूट जाओगे !


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