मनवा बसंती
मनवा बसंती
नव जीवन प्रकृति ने पाया
शीत की ठिठुरन से काँपते तन
ने राहत पाई,
वो अधखुली कलियाँ मुस्काई,
सरसों ने ली अंगड़ाई,
धरा को पीली चादर ओढ़ाई
देख सुरमयी समां, मैं चहकती
और हुआ मनवा बसंती
ज्यों पीले पत्ते गिरे, और
गुल है खिले, यूँ ही दूर
हो जाए सारे शिकवे गिले,
मिल जाए मन मीत
गायें बसंत के गीत
मन मोर तो सदा ही नाचता था,
इन भंवरों को गुलों पर मंडराने देख,
जागे है अरमान सभी
तुम भी मिल जाओ कभी,
मनवा हुआ है बसंती
पक्षियों ने भी भरी उड़ाने है
हमने भी आसमां छूने की
ठानी है
अल्फ़ाज़ों को बना कर पंख
कलम से उड़ते,
मनवा बसंती, लगे है नये रंग