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Harpreet Kaur

Abstract

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Harpreet Kaur

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हमें छोड़ दिया

हमें छोड़ दिया

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तुम हमें छोड़ कर यूँ शहर आ गए

बे-सबब ही सही तुम किधर आ गए


याद आती मुलाकात की रात भी

ख़्वाब में ही सही तुम नज़र आ गए 


मिलते अब हम से वो अजनबी की तरह

राह में छोड़ के रहगुज़र आ गए 


अश्क के आबशार बहते ही रहे

 पत्थरों से हमें छोड़ कर आ गए


प्रीत की ज़िंदगी पर तेरा हक नहीं

हम ये कौन सी अब डगर आ गए ।



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