आज़ादी
आज़ादी
देश मेरा कभी गुलाम था
आज़ादी मिलें ख़्याल था
वीरों ने जो खून बहाया
तिरंगे का परचम फहराया।
मन का पहनें मन का खाएं
हँसने बोलने की आजादी पाए
मज़हब की न हो दीवारें
मिल जुल कर उत्सव बनाए।
बदला वक्त और तस्वीर भी
बदले आज़ादी के मायने भी
पाश्चात्य सभ्यता के रंग रंगी
रोज़मर्रा की जरूरतें सभी।
मैगी बर्गर पिज्जा खाने में
कटे-फटे कपड़े पहनने में
खुलकर प्रयोग अपशब्दों का
क्या हम आज़ाद है ऐसे रहने में।
कीमत पहचानें अपनी आज़ादी की
ज़रूरत है करें खत्म संकीर्णता विचारों की
विकासशीलता के पिंजरे से बाहर निकल
विकसित राष्ट्र का सपने को पूरा करने की।