मेरा चांद
मेरा चांद
रात के करीब कुछ दो - ढाई बजे होंगे
मैं खिड़की से चांद को निहार रही थी
आंखों से नींद गायब थी
चांद भी आसमान में अठखेलियां कर रहा था
कभी बादलों के बीच छिप रहा था
कभी अचानक से निकाल कर हर ओर
चांदनी बिखेर रहा था
तभी अचानक से एक ख्याल ने
मेरे दिल के द्वार पे दस्तक दी
एक ख्वाब जो हमने साथ देखा था
इसी किसी चांदनी रात में
जब हम घंटों बात किया करते थे
कभी कुछ बचकानी हरकतें
मेरी बेफिजूल की ज़िद
और तुम्हारा नहीं नहीं करते मान जाना
फिर एक दिन जीवन में अमावस कि रात आई
तुम उस चांद की तरह ना जाने कहा चले गए
मैं हैरान परेशान तलाशती रही तुम्हें
तारो की भीड़ में पर
तुम तो जा चुके थे .... मेरे जीवन में अमावस कर के ....
इस आसमान का चांद तो अमावस के बाद लौट आता है
पर मेरा चांद फिर कभी नज़र नहीं आया ....
खैर इस चांद को देख के सुकून मिलता है
और जीवन में सुकून ही चाहिए ....।