Become a PUBLISHED AUTHOR at just 1999/- INR!! Limited Period Offer
Become a PUBLISHED AUTHOR at just 1999/- INR!! Limited Period Offer

yogita singh

Abstract Drama Tragedy

4  

yogita singh

Abstract Drama Tragedy

दिखावा

दिखावा

1 min
288


ये मत सोचना की उदास हूं मैं

पर सच कहूं

बहुत दूरियां बढ़ गई है हर किसी से

तंग आ चुकी हूं झूठे दिखावों से


सबको देती रही अहमियत मैं

पर खो दिया मैंने खुद को कहीं

आज महसूस हो रहा

जिनको किया नजरअंदाज


आज उनके हाथ कंधों पर है

जिनको मैंने थे हाथ बढ़ाए

सब ने मुझे खूब स्वाद चखाए

बस अब दिखावा ना करना

नहीं चाहते तो बात मत करना

मुझे अब बिल्कुल बुरा नहीं लगता

किसी के बर्ताव से

ना ना ये बिल्कुल ना सोचना

उदास ना हूं मैं।


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract