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yogita singh

Abstract Drama Tragedy

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yogita singh

Abstract Drama Tragedy

दिखावा

दिखावा

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ये मत सोचना की उदास हूं मैं

पर सच कहूं

बहुत दूरियां बढ़ गई है हर किसी से

तंग आ चुकी हूं झूठे दिखावों से


सबको देती रही अहमियत मैं

पर खो दिया मैंने खुद को कहीं

आज महसूस हो रहा

जिनको किया नजरअंदाज


आज उनके हाथ कंधों पर है

जिनको मैंने थे हाथ बढ़ाए

सब ने मुझे खूब स्वाद चखाए

बस अब दिखावा ना करना

नहीं चाहते तो बात मत करना

मुझे अब बिल्कुल बुरा नहीं लगता

किसी के बर्ताव से

ना ना ये बिल्कुल ना सोचना

उदास ना हूं मैं।


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