समझो मुझे तो अच्छा हो
समझो मुझे तो अच्छा हो


समझो मुझे तो अच्छा हो यूं
समझने वाले लाखों हैं
खौलते लफ्ज़ जुबा खामोश है
लफ़्ज़ लबों पे सीने में आग है
रूह निकलती नहीं जिस्म से
जिस्म मरने को तैयार है
चल रहे किसी डगर पर
पैरों को मंजिल की तलाश है
यूं तो दिखते है ना जाने कितने अपने
पर पता है मुझे
सब भेड़िए ओढ़े शेर की खाल है
और सुनो
हमे पता है हम नहीं किसी काबिल
पर
तुम लायक नहीं हो हमारे
क्या इस बात का तुम्हे एहसास है.