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Lakshman Jha

Drama

3  

Lakshman Jha

Drama

मेघ

मेघ

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नभ में

तू विचर रहा

अविरल

हे मेघ ! बता

तू चला किधर ?


कभी तू बनता

कोमल पंकज,

मंदिर बनता

और भव्य महल !


कभी लगता

है तू बन गया

विशाल

स्वर्ग का

श्वेत शिखर !


नभ में

तू विचर रहा

अविरल

हे मेघ ! बता

तू चला किधर ?


प्रेरणा, कल्पना का

तू स्रोत रहा

कवि का हरदम,

कभी मेघदूत

कभी दूत बना

कितने प्रेमियों का !


प्यासे पाए अमृत तेरे

तू रूप रंग से

लेप दिया सारा अम्बर !


नभ में

तू विचर रहा

अविरल,

हे मेघ ! बता

तू चला किधर ?


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