मेघ
मेघ
नभ में
तू विचर रहा
अविरल
हे मेघ ! बता
तू चला किधर ?
कभी तू बनता
कोमल पंकज,
मंदिर बनता
और भव्य महल !
कभी लगता
है तू बन गया
विशाल
स्वर्ग का
श्वेत शिखर !
नभ में
तू विचर रहा
अविरल
हे मेघ ! बता
तू चला किधर ?
प्रेरणा, कल्पना का
तू स्रोत रहा
कवि का हरदम,
कभी मेघदूत
कभी दूत बना
कितने प्रेमियों का !
प्यासे पाए अमृत तेरे
तू रूप रंग से
लेप दिया सारा अम्बर !
नभ में
तू विचर रहा
अविरल,
हे मेघ ! बता
तू चला किधर ?
