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माँ गंगा

माँ गंगा

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जी करता है जी भर के देख

भर लूँ तुझको मैं पलकों में

पर जैसे डूबूँ तेरे एहसासों में

बह जाती है तू पलकों से।


है बड़ा कोमल स्पर्श तेरा

काशी का है तू अद्भुत सवेरा

रहे काल भी तुझसे डरा

हैं जटाधारी तेरी धारा।


तू है पवित्र तू है निर्मल

माँ ! देती तू मोक्ष रख अपने आँचल

है योगियों से तू अलंकृत

बहती धारा भी हिमालय सी शांत।


तू है हर-हर तू है कल-कल

तू है डम-डम के सिर झर-झर

आस्था की है तू लहर

है अमृत तू इस धरा पर।।


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