बादल
बादल
मैंने शीतल जल से भरे , काले घने और
कड़ी धूप को ढकते बादलों से वादा लिया
मैंन उन बादलों से वादा लिया
जिन्हें बरस के गुजर जाना था
अब आसमान में आते जाते बादलों में
वो एक बादल का टुकड़ा कहां ढूंढू
कैसे बताऊं उसे कि अब मैं विश्वास खो चुकी
यूं बेबाक सा विचारों को इतना ऊंचा नहीं उछाल पाती
अब मैं बादलों के पार नहीं जा पाती
अब किसी और को अपनी कहानी नहीं सुना पाती...
कैसे कहूं उसे... क्या उसे मेरी याद नहीं आती
पर जरुर कहीं बरसते हुए वो बदल भी ढूंढता होगा
कोई मासूम आंखें जो उसकी तरफ देखें, हसें
उसमें मनचाही तस्वीर बना के उससे बातें करे
पर शायद उसे अब वो आंखें ना मिलेंगी
क्यूंकि उन आंखो को अब ये इक तमाशा लगता है।
