शरणागत
शरणागत
"मैं शाश्वत हूं मुझ तक पहुंचो
ये तुम कहां ठहर जाते हो...
मेरे हो तुम मुझको ढूंढो...
खुद ही क्यूं गुम हो जाते हो..
जो तुम्हें दुःख देता है
उस संसार के पीछे भागते हो
ये तुम क्या करते हो..
जब दूसरों के लिए भी उदास हो जाते हो
तुम मेरे लिए और भी खास हो जाते हो
तुमको घेरे हुए हूं मैं ..
मुझे क्यूं नहीं देख पाते हो...
मैं हूं करुणा, प्रेम का सागर ..
मुझमें गोता लगा के देखो...
हो जाओगे दिव्य अलौकिक
मेरे पास आकर देखो"