अगर मैं नहीं लिखता
अगर मैं नहीं लिखता
अगर मैं नहीं लिखता
तो अकेले कहीं बैठा होता
जो बात कह नहीं सकता
उन बातों को खुद में बुनता रहता
अपनी ही दलीलों को खुद ही सुनता रहता
उनमें से जो मेरे मन को सहलाती
उन बातो को चुनता रहता
अगर मैं नहीं लिखता तो क्या करता
शांति से बैठा हर आहट सुनता रहता
जाने कहीं से कोई आवाज आए
जो मुझे मुझसे दूर ले जाए
क्या करता उस वक्त जब मेरी सांसें मुझमें ही फसती हों
मेरी आत्मा जैसे मुझसे चीख के कुछ कहती हो
क्या करता जब मैं बंधा सा महसूस करता
तो मैं हर आहत शब्द को अपने अंदर लिए खुद को सम्भालता
उन दलीलों और चीख को मौन कर कोइ रास्ता बनाता
और अपनी कहानी लिखता।