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Annapurna Mishra

Others

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Annapurna Mishra

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आत्मग्लानि

आत्मग्लानि

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रूठा हूं खुद से , कुछ भी अच्छा नहीं लगता 

आंसु भी नहीं निकलते मैं तार तार होता हूं 

खुद से नफरत में मैं ना जाने क्या क्या खोता हूं 

ये मेरी हंसी और ये आवाज दुनिया के लिए है

अंदर सन्नाटा है मैं सुना सुना फिरता हूं 

कभी सोचा नहीं था मैं खुद से ही हारूंगा 

पहले सा शायद अब कुछ भी नहीं होगा 

अब हाथ खड़े कर लिए हैं जो होगा वो होगा 

मेरे होने में अब मेरा कुछ भी नहीं 

सांसे लेता हूं तो चलो मैं जिंदा सही 

और जिंदा इसलिए भी कि जिंदगी खूबसुरती से भरी है  

हर एक पल कुदरत मुझे खुशनुमा बनाने में लगी है...



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