क्यों नहीं देता ?
क्यों नहीं देता ?
तू मशहूर है यहां बहुत ऐ ख़ुदा परास्त,
तो अपने सज़दे का हिसाब क्यों नहीं देता ?
धर दिया दाग़ कईयों के दामन पर जिसने,
तेरा ख़ुदा उनको अज़ाब क्यों नहीं देता ?
चढ़ाता है चादर अक्सर गजरे और दरगाहों पर,
तू कुछ फकीरों को किमखाब क्यों नहीं देता ?
साकी भी तू, मयखाना भी तेरा सही,
मुझे मेरे हिस्से का शराब क्यों नहीं देता ?
कब, क्यों, कैसे, कहां लूटा तू मेरे दोस्त,
इन जरूरी सवालों का जवाब क्यों नहीं देता ?