जिंदगी इक रंगमंच है
जिंदगी इक रंगमंच है
जिंदगी इक रंगमंच है
जिसकी बागडोर उन हाथो में है
जिसे कभी देखा नहीं, सिर्फ़ सुना है
इस अदृश्य डोर से बंधे हुए
हम सब कठपुतली हैं
जैसा वह चाहे, वैसा ही करवाता है,
कहानी भी उसकी, पटकथा भी उसकोी,
और निर्देशन भी उसका
संवाद भी उसके ही गढ़े हुए
हम तो सिर्फ़ उसके रंगमंच पर आते है और
अपना-अपना किरदार निभाकर
नेपथ्य में कहीं खो जाते हैं
यहाँ गलती की कोई गुंज़ाइश नहीं
अगर ऐसा होता है तो
किरदार बदल जाता है
जो जितना सक्षम, उतना दमदार किरदार
किरदार छोटा हो या बड़ा, निभाना पड़ता है
मगर ये भी सच है कि
किरदारों के बिना, रंगमच अधूरा है
हम सब ज़िन्दगी के रंगमंच में
अपने-अपने किरदार निभाकर
इक दिन लौट जायेंगे, मगर ये रंगमंच
चलता रहेगा अनवरत
कुछ नए किरदारों के साथ।