बहने दो ना!
बहने दो ना!
बहने दो ना,
मत समेटो इन लहरों को,
न ही रोको इनको तुम अपने शब्दो की बांध में,
ये बांधो में बांधने वाली नही हैं।
कहने दो ना,
कभी सुनलो तुम भी मेरी बातों को,
और जवाब में अपने किस्से मत जोड़ों इनसे,
कुछ ख़ामोश लम्हों को बैठने दो हमारे दरमियां।
बदलने दो ना,
पुरानी सी हो गई हूं,
सिलवटे पड़ गई हैं मेरे अस्तित्व और अभिमान पर,
अब थक सी गई हूं खुदको समेटते समेटते।
उड़ने दो ना,
कबसे बस घड़ी के कांटे की तरह गोल गोल घूम रही हूं,
कब सुबह हुई, कब रात होगी, कुछ नही जानना मुझे,
बस आंखें बंद करके उड़ जाना चाहती सारी झंझटों से दूर।