गहरा अंधेरा
गहरा अंधेरा
चारो ओर है छाया एक गहरा अंधेरा,
ये अजीब सा मन में दर्द है कैसा।
अपना सा लगा था जो गीत अब वो पराया सा लगता है,
कोई दिखे ना करीब ये रास्ता अब अनजाना लगता है,
कोई बताए की जाए कहा,
क्यों धुंधला हो गया ये रास्ता।
चारो ओर है छाया एक गहरा अंधेरा,
ये अजीब सा मन में दर्द है कैसा।
सूनी सी ये गलियां,
दर्द से बे तहाशा डूबी है ये गलियां,
ये मौसम भी कुछ कहना चाहता है,
लगता है मुझसे मेरा दर्द बांटना चाहता है।
चारो ओर है छाया एक गहरा अंधेरा,
ये अजीब सा मन में दर्द है कैसा।
बेताब होते इस मन को क्या दिलासा दूं,
मन मान जाए आखिर ऐसा क्या कह दूं,
मन के आंगन में तो यादों का बसेरा है,
इस अंधेरे का आखिर कहा खोया सवेरा है।
चारो ओर है छाया एक गहरा अंधेरा,
ये अजीब सा मन में दर्द है कैसा।
इस अंधेरे में मैं किसी चीज़ ना टकरा जाऊं,
कही तिल तिल मैं बिखर ना जाऊं,
ज़रा ध्यान से सुनता हूं कोई आहट जरूर सुनाई देगी,
इस सन्नाटे और अंधेरे में रोशनी जरूर दिखाई देगी