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Apoorva Verma

Abstract Drama Romance

4  

Apoorva Verma

Abstract Drama Romance

तुम मुझे मिली मैंने तुम्हें खोय

तुम मुझे मिली मैंने तुम्हें खोय

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तुम मुझे मिले

खाली कमल में 

स्याही की तरह 

स्याही में स्तरंग से

रंग की तरह 


तुम मुझे मिले

डूबते सूरज को

नदी की तरह 

नदी में झलकती

आसमान की हर पंछी की तरह 


तुम मुझे मिले

कविता को सुरो की तरह 

सुर से सुर मिलती 

सुरमई ताल की तरह 


तुम मुझे मिले

हाथो में लकीरों की तरह

लकीरे मिलती जो 

आसमान में सितारों की तरह 


तुम मुझे मिले

शून्य को मूल्य की तरह 

मूल्य जिसके योग से

परिधि के परे संसार की तरह।


मैंने तुम्हे खोया 

नई वधु के गालों में लालिमा की तरह 

लालिमा जिसके प्रभाव से

शर्मा उठती वो सुनहरी धूप की तरह।


मैंने तुम्हे खोया 

अंक में रंक की तरह 

रंक जिसे अंक की 

मदिरा हो मद्यप की तरह।


मैंने तुम्हे खोया 

समुद्र में द्वारिका की तरह 

छल कपट की बेड़ियों में 

सत्य असत्य की तरह।


मैंने तुम्हे खोया 

इंसानों ने इंसानियत की तरह 

होते हुए भी न पहचान पाए

उस पाक एहसास की तरह।


मैंने तुम्हे खोया

बदल ने अपने अनोखे रूप की तरह 

वायु ने बिगड़ दिया ,

इतना कमजोर हमारे रिश्ते की तरह।


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