बैरी ए मन
बैरी ए मन
जहां जाने से रोका,
तू उस ओर क्यूं बढ़ा।।
जाकर उन बीती राहों में आखिर मिलेगा क्या,
वापस बिखर कर आखिर तू पाएगा क्या,
सफ़र बेहद मुश्किल होगा,
ना जाने किन किन किस्सों से तेरा सामना होगा।।
जहां जाने से रोका,
तू उस ओर क्यूं बढ़ा।।
तू क्यूं फिर उस वीरान आंगन में झूमना चाहता है,
क्यूं उन गलियों से गुजरना चाहता है,
तुझे वो छुअन आंगन के किसी कोने में ठहरी मिलेगी,
उन पुरानी दीवारों पर आज भी एहसासों की तस्वीर तुझे मिलेगी।।
जहां जाने से रोका,
तू उस ओर क्यूं बढ़ा।।
तेरे कदम आखिर क्यों बढ़े है पीछे,
क्यों चल दिया तू जुगनू की तलाश में आंखें मीचे,
ना जा तू उस ओर की दरिया गहरा है वहाँ,
थक जाएगा जब खुद से लड़ते लड़ते तब ठहरेगा कहा।।
जहां जाने से रोका,
तू उस ओर क्यूं बढ़ा।।
ए मन अब बस कर,
जो मुमकिन नहीं वो आस ना रख,
ज़रा सा ठहर,
जी ले तू ये पहर।।

