बोलती आँखों में कुछ
बोलती आँखों में कुछ
इन आँखों से ना पूछो, इनके ख्वाब का आलम,
समय के पहिये से, हर एक ख्वाब कुचलता है।
सब बस पूछ लेते हैं, हसरतें क्या है इनकी,
पर कोई एक तमन्ना भी कभी पूरी नहीं करता है।
बोलती आंखों में कुछ, चुप से बिखरे ख्वाब हैं,
हर तमन्ना है लुटी पर, बिंदास फिर भी अंदाज़ हैं।
बोलती आंखों में कुछ…..
लब पर रहती है हँसी, पर फिकी पड़ी मुस्कान है,
दिल की हर आरज़ू पर, जलता हुआ शमशान है,
वक़्त से ये बेबस हैं और, वक़्त से ही परेशान हैं।
बोलती आंखों में कुछ…..
इस ज़माने में तो इनका, नाम तो है इंसान ही,
पर ज़माने को इनसे है ,मगर सिर्फ इनकार ही,
जाने कब ये लोग मानेंगे, की ये भी एक इंसान हैं।
बोलती आंखों में कुछ…..
आओ हम मिलकर इन्हें, दे दें कोई एक खाब हसीन,
एक तमन्ना हो जाये पूरी, देखे ये वो एक शाम भी,
हाथ में इनके कलाम दें, कहें तेरा अब पूरा आसमान है।
बोलती आंखों में कुछ…..