कोई ज़ख्म दे गया लफ़्ज़ों में
कोई ज़ख्म दे गया लफ़्ज़ों में
दिल के दरवाजे पर हुई दस्तक, किसी के सिसकने की आ रही थी आवाज़,
टटोला अंदर तो पाया मैंने, निकल रहे थे कुछ दर्द भरे अहसास।
मचा हुआ था भावों का घमासान, दिल में चुभ रहे थे तीर,
अल्फ़ाज़ों के इस कोलाहल में, दिल हो रहा था चीर चीर।
कई दिनों से हो रही थी, किसी अपने से अपने की कहासुनी,
वर्षों तक साथ निभाया था जिससे, उसकी आंखें हो रही थी खूनी।
जाने किस बात की कमी रह गयी, कहाँ गलत हो गया स्नेह का बंधन?
कैसे पनप गयी नफ़रत की भावना, दिया था जिसे साँसों का स्पन्दन?
दिल में कुछ टूट रहा था, सिसकता हुआ बहा रहा था वह आँसू,
पल भर में ही बिखर गया सब, आँखों से निकल रहे थे आँसू।
किसी अपने के कहे अल्फ़ाज़ों का ज़ख्म था, लगी थी गहरी चोट,
समझ न पा रही थी मैं, कैसे अपने ही अपनों से कर लेते हैं खोट?
किसे दोष दूँ, कैसे दोष दूँ, शायद मुझ में ही होंगी कोई कमी,
रहते थे साथ, कितने खुश थे हम, हवाएँ चलने लगी क्यूँ यूँ सहमी सहमी।
दुहाई देते हम औरों की, और अपने ही घर में हो गया विघटन,
खुद को मानते सदा सही, छिन्न भिन्न कर दिया परिवार का चमन।
मैंने तो सौंप दिया था सर्वस्व उनको, ऊंचाई पर था प्रीत का परवान,
बड़ी तकलीफ होती है दिल को, जब सहसा अपने हो जाते हैं हैवान।
मेरी बताने लगे वो औकात, आँखों से हट गया शर्म का पानी,
भूल गये सारा मान सम्मान, इन्हें तो भाने लगी अपनी ही कहानी।
पता नहीं इनको अभी, क्यों करने लगे सहसा ये ऐसा व्यवहार,
जाने क्या मिला होगा इन को, करके यूँ मुझसे दुर्व्यवहार?
रहते ये एकल परिवार में, बड़ा खुशहाल था हमारा परिवार,
फिर भी हो गये क्यूँ अधीर, किस बात का लिया मुझ से प्रतिकार।
पूछती हूँ आज इन से मैं, क्यूँ किया बिन बात मेरा यूँ अपमान,
नारी के सम्मान में होती बरकत, करना सही से इनका सम्मान।
पायल की घर में जब होती झंकार, तभी बनता है एक झूमता परिवार,
कभी रूठ जाती जब चूड़ियों की खनकार, बिलख उठता यह संसार।
पूछती हूँ आज इस टूटे दिल से इनको, क्यूँ दिए मुझे ये दर्द,
क्या खता थी मेरी यह तो बताते, क्यूँ जम गई भावों पर गर्द?
कितना प्यार भरा परिवार था, सब पल भर में ही बिसर गया,
वर्षों से पनप रहा था रिश्ता, लफ़्ज़ों की चुभन से बिखर गया।