जो हम हैं, वो हम नहीं
जो हम हैं, वो हम नहीं
जो हम हैं, वो हम नहीं,
कितना बदल दिया है खबरों ने !
ज़रूरतें कुछ और है,
सपने दिखाते कुछ और हैं।
जो सियासत को समझ गए
वो कुछ और है !
जो ना समझे वो कुछ और है l
कितने मुरख है 'हम सब'
जो खबरों में ढूंढते हैं किस्मत ,
सियासत पर बैठे लोग वो कुछ और है।
उनकी बुलावे पर खूब जमती है , हुजूम ,
नारे लगते हैं, पत्थर चलते हैं ,
खबरों में संधा होती खून की खुशबू !
हम किस धरे खड़े होते हैं तब भी,
जल रही होती है महज लाश l
हम -तुम , एक ही गलियारों में रहते है,
तब ना थी ऐसी हाय - तौबा !
जब आई बारी सियासत की
तब बदल गई फिजा का रंग भी,
बदल गई सुबह की खबरों की मिजाज भी l
जो हम हैं, वो हम नहीं ,
कितना बदल दिया है खबरों ने !
यह एक अवसाद है ,
जो तेजी से फैल रहा है ,
इंसानों में बनता जा रहा 'कट्टरपंथ' का टीला।
कट्टरता की आड़ में बहा दी खून की नदियाँ
फिर भी पाया कुछ नहीं !
आदमी , इंसान से मिलने को तरस गए।
लिखो इंसान का इतिहास भी ,
शुरू करो सृजन का अध्याय भी !
इंसानी मोहब्बत, विज्ञान की बहती धारा।
जलकर जो खोया है !
एक नई राह पाना है,
प्राकृत के उन्मुक्त गगन में
देश को सुखद बनाना है।
कैसे खिलेगी फूल मोहब्बत के,
कुछ कांटों से बचना है!
आओ सब मिलकर इंकलाब की लकीर खिचना है।