हर रंग की कमी है
हर रंग की कमी है
माहौल है होली का हर रंग की कमी है
स्याही सी रात मानो ठहर सी गई है
भोर अभी दूर बहुत दूर लग रही है
मनवा के मन में विषाद की नमी है।
सूनी गलियां सूने चौराहे डर के माहौल में
कोई करीब ना आएं,
कैसी है कुदरत की तान ये तीखी रंग बिरंगी
त्यौहार की रंगत है फ़िकी।
मुखौटे के पीछे मुस्कान है
बेकल खुशियों का जहाँ गुम है,
बधाई क्या दे हर दूसरे घर में है कोरोना का कहर
जाने कहाँ दुनिया की खोई है रौनक।
विक्षुब्ध है इंसान इस की न कोई खबर है
कट तो रही है ज़िंदगी पर ज़िंदा कहाँ है
वक्त की क्षितिज पर दुनिया खुशियों के
इंतज़ार में थमी है।