हक
हक


ना वो गलत ना हम बेकसूर है,
पर थोड़े ना समझ वो थे तो थोड़े ज़िद्दी हम थे।।
वो बहकने की उम्र है,
पर संभलने का इरादा भी दिल में रखते थे।।
कुछ ख्वाहिश अभी दिल में है,
पर हम टूटे ख्वाब भी जोड़ना जानते थे।।
रात के अंधेरे से थोड़ा डर है,
पर आंखों में सुबह के इंतज़ार रखते थे।।
अभी हालात हक में नहीं है,
पर हालात में ख़ुद को ढालना जानते थे।।
जो बयान हों जाए ये वो किस्सा नहीं है,
पर खामोशी से राज बयान करना जानते थे।।