हास्य और व्यंग पर कुछ छंद पेश है
हास्य और व्यंग पर कुछ छंद पेश है
टुनटुन सी बीवी मिली, बच्चे गोल मटोल।
जब मिल ये पलटन चले, धरती जाए डोल।
धरती जाए डोल, लगे भूँचाल आ गया,
और लगे भी साथ, हमारा काल आ गया।
कह "कुमार" पक कान, गए फरियादें सुन सुन,
भैंस सरीखी नार, मिली है मुझको टुनटुन।।१।।
बीवी मेरी एक है ,औ" बच्चे हैं आठ
खाने को रोटी नहीं, हों फिर कैसे ठाठ।
हों फिर कैसे ठाठ, घूमने जाएँ कैसे,
महँगाई की मार, कहाँ से लाऊँ पैसे।
कह "कुमार" अब देख, माँगती भी है टीवी,
बस बच्चों का साथ, निभाती मेरी बीवी।।२।।
साली मेरी चुलबुली है,
वह मेरी जान।
हर पल रखती है वही, यारों मेरा ध्यान।
यारों मेरा ध्यान रखे, यूँ तो घरवाली,
लेकिन साली देख, करे बस बात निराली।
कह "कुमार" मदहोश करें आँखें मतवाली,
हर पल खुशियाँ बाँट, रही जीजे को साली।।३।।
साहस मैं कैसे करूँ, मेरी क्या औकात।
साहस गर मैंने किया, खानी होगी लात।
खानी होगी लात, देख अपनी पत्नी से,
चोट छुपानी यार, पड़ेगी फिर कथनी से।
कह " कुमार" बेहाल, हुआ मैं यारा मत हँस
सोच रहा हूँ आज, छोड़ दूँ करना साहस।।४।।